Sep 16, 2012

सेक्स चर्चा (भाग -2)

      हम जीवन के मूल तत्व ‘ काम ‘ अर्थात ‘सेक्स’ के ऊपर विभिन्न विचारकों और अपने विचार को आपके समक्ष रखेंगे ।
      काम का जीवन में क्या उपयोगिता है ?सेक्स जिसे हमने बेहद जटिल ,रहस्यमयी ,घृणात्मक बना रखा है उसकी बात करने से हमें घबराहट क्यों होती है ? क्यों हमारा मन  सेक्स में चौबीस घंटे लिप्त रहने के बाद भी उससे बचने का दिखावा करता है ? अब आप कहेंगे कि आजकल जमाना बदल रहा है , यौन शिक्षा का चलन शुरू हुआ है परन्तु यह जो यौन शिक्षा दी जा रही है क्या वह सही है ? क्या केवल सेक्स कैसे करना चाहिए , यौन रोगों से कैसे बचा जा सकता है , स्त्री-पुरुष के यौनांगों की जानकारी देने भर से सेक्स को समझा जा सकता है ? नहीं , कदापि नहीं . सेक्स या काम इतना सरल और सतही नहीं है .
 
 
     ओशो कहते हैं "सेक्स प्रेम की सारी यात्रा का प्राथमिक बिंदु  है और प्रेम परमात्मा तक पहुँचने की सीढी है |" सेक्स को ,काम को,वासना को मानव समाज ने पाप का नाम देकर विरोध किया है . इस विरोध ने,मनुष्य की अंतरात्मा में निहित प्रेम के बीज को अंकुर बनने से पूर्व ही रोक दिया , प्रेम के प्रस्फुटन की संभावनाएं तोड़ दी , नष्ट कर दी |
universe/ संसार की समस्त सभ्यता- संस्कृतियों ,धर्मों , गुरुओं और महात्माओं ने काम को यानि प्रेम के उत्पत्तिस्थल पर चोट किया है . मानव समाज की इस भूल के  कारण से सेक्स एक संकीर्णता के रूप में  देखा जाने लगा  है . सेक्स से खुद को दूर करने की बाह्य  कोशिश में आदमी पल-पल “सेक्स”  की हीं सोच  में खोया  रहता  है . आज के इस उपभोक्तावादी  संसार में सेक्स की भोग वाली छवि  को बदलने  की जरुरत है . सेक्स को अध्यात्म में घोलकर दुनिया के सामने एक नए रूप में पेश किये जाने आवश्यकता  है .

     सेक्स की ऊर्जा  को प्रेम में परिवर्तित  करने हेतु  सबसे पहले सेक्स के सही स्वरुप और उसकी उपयोगिता को गहरे  से समझना होगा . यहाँ आगे अपनी  चर्चा  में इन तमाम  पहलुओं  पर प्रकाश  डालेंगे (आगे आने वाले लेख भाग-3 में)

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